Friday, June 19, 2009

चाणक्य नीति:विवशता में करते हैं भक्ति का नाटक

1.भंवर जब तक कमल दल के बीच रहता है तो उसके फूल का मजा लेता है पर अगर उसे वहां से दूर तौरिया का फूल भी उसे बहुत आनन्द देता. इसी कारण मनुष्य को भूखे रहने की बजाय कुछ खा लेना चाहिए. अगर अपनी मनपसंद का भोजन नहीं मिले तो जो मिले उसे खा लेना चाहिए-भूखा रहना ठीक नहीं है.

2. जब कोई शक्तिहीन साधू, धनहीन ब्रह्मचारी और रोगी किसी देवता का भक्त बनता है तो उसे ढोंगी कहा जा सकता है. वास्तविकता यह है कि बलवान कभी साधू, धनवान कभी ब्रह्मचारी नहीं बनता. सब लोग विवशता के कारण नाटक करते हैं और कुछ नहीं.

3. अगर आदमी का स्वयं का मन ठीक है तो उसे भक्ति का पाखंड करने की जरूरत नहीं पड़ती! लोभी को दूसरे के दोषों से क्या? चुगली और परनिन्दा करने वाले को दूसरे के पापों से सत्यवादी को तपस्या से हृदय की स्वच्छता वाले को तीर्थ यात्रा से, सज्जन को दूसरे के गुणों से क्या वास्ता? अगर अपना प्रभाव है तो भूषन से, विधा है तो धन से और अगर अपयश है तो मृत्यु से क्या लाभ?

4.मनुष्य की चार चीजों की भूख कभी नहीं बुझती. धन, जीवन स्त्री और भोजन. इसके लिए वह हमेशा लालायित रहता है.

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