दोनों ही फोटो श्री अरविन्द केजरीवाल जी की हैं, और एक ही जगह की भी हैं .... कुछ महीने पहले जब वो आम आदमी थे तब पुलिस उन्हें खीच के फैक रही थी और आज जब वो दिल्ली के मुख्यमंत्री बन गए तो आलम ही बदल गया !
देवेन्द्र यादव - Devendra Yadav
Tuesday, December 24, 2013
समय बड़ा बलवान रे भाई....
दोनों ही फोटो श्री अरविन्द केजरीवाल जी की हैं, और एक ही जगह की भी हैं .... कुछ महीने पहले जब वो आम आदमी थे तब पुलिस उन्हें खीच के फैक रही थी और आज जब वो दिल्ली के मुख्यमंत्री बन गए तो आलम ही बदल गया !
Monday, February 1, 2010
जन गण मन ... रण है
इस रण में जख्मी हुआ है भारत भाग्य विधाता
पंजाब सिंध गुजरात मराठा एक-दूसरे से
लड़कर मर रहे हैं
इस देश ने हमको एक किया, हम देश के टुकड़े
कर रहे हैं
द्राविड़ उत्कल बंग, खून बहाकर हमने एक रंग
का कर दिया तिरंगा
सरहदों पर जंग और गलियों में दंगा-फसाद
विंध्य हिमाचल जमना गंगा में तेजाब उबल
रहा है,
मर गए सबके जमीर, जाने कब हो जिंदा आगे फिर
तब शुभ नामे जागे, तब शुभ आशिष मांगे
आग में जलकर चीख रहा है, फिर भी कोई
सच को नहीं बताता
गाए तब जय गाथा
देश का ऐसा हाल है, लेकिन आपस में लड़ हैं नेता
जन गण मंगल दायक जया है
भारत को बचा ले विधाता...
Wednesday, December 30, 2009
Monday, November 30, 2009
फिल्म बनाना आसान कम नहीं
Friday, June 19, 2009
चाणक्य नीति:विवशता में करते हैं भक्ति का नाटक
2. जब कोई शक्तिहीन साधू, धनहीन ब्रह्मचारी और रोगी किसी देवता का भक्त बनता है तो उसे ढोंगी कहा जा सकता है. वास्तविकता यह है कि बलवान कभी साधू, धनवान कभी ब्रह्मचारी नहीं बनता. सब लोग विवशता के कारण नाटक करते हैं और कुछ नहीं.
3. अगर आदमी का स्वयं का मन ठीक है तो उसे भक्ति का पाखंड करने की जरूरत नहीं पड़ती! लोभी को दूसरे के दोषों से क्या? चुगली और परनिन्दा करने वाले को दूसरे के पापों से सत्यवादी को तपस्या से हृदय की स्वच्छता वाले को तीर्थ यात्रा से, सज्जन को दूसरे के गुणों से क्या वास्ता? अगर अपना प्रभाव है तो भूषन से, विधा है तो धन से और अगर अपयश है तो मृत्यु से क्या लाभ?
4.मनुष्य की चार चीजों की भूख कभी नहीं बुझती. धन, जीवन स्त्री और भोजन. इसके लिए वह हमेशा लालायित रहता है.
Thursday, February 5, 2009
रहीम के दोहे - Raheem Ke Dohe
एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय।
रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै फलै अगाय॥
देनहार कोउ और है, भेजत सो दिन रैन।
लोग भरम हम पै धरैं, याते नीचे नैन॥
अब रहीम मुसकिल परी, गाढ़े दोऊ काम।
सांचे से तो जग नहीं, झूठे मिलैं न राम॥
गरज आपनी आप सों रहिमन कहीं न जाया।
जैसे कुल की कुल वधू पर घर जात लजाया॥
छमा बड़न को चाहिये, छोटन को उत्पात।
कह ‘रहीम’ हरि का घट्यौ, जो भृगु मारी लात॥
तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान।
कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान॥
खीरा को मुंह काटि के, मलियत लोन लगाय।
रहिमन करुए मुखन को, चहियत इहै सजाय॥
जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग।
चन्दन विष व्यापत नहीं, लपटे रहत भुजंग॥
जे गरीब सों हित करै, धनि रहीम वे लोग।
कहा सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताई जोग॥
जो बड़ेन को लघु कहे, नहिं रहीम घटि जांहि।
गिरिधर मुरलीधर कहे, कछु दुख मानत नांहि॥
खैर, खून, खाँसी, खुसी, बैर, प्रीति, मदपान।
रहिमन दाबे न दबै, जानत सकल जहान॥
टूटे सुजन मनाइए, जो टूटे सौ बार।
रहिमन फिरि फिरि पोहिए, टूटे मुक्ताहार॥
बिगरी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय।
रहिमन बिगरे दूध को, मथे न माखन होय॥
आब गई आदर गया, नैनन गया सनेहि।
ये तीनों तब ही गये, जबहि कहा कछु देहि॥
चाह गई चिंता मिटी, मनुआ बेपरवाह।
जिनको कछु नहि चाहिये, वे साहन के साह॥
रहिमन देख बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि।
जहाँ काम आवै सुई, कहा करै तलवारि॥
माली आवत देख के, कलियन करे पुकारि।
फूले फूले चुनि लिये, कालि हमारी बारि॥
रहिमन वे नर मर गये, जे कछु माँगन जाहि।
उनते पहिले वे मुये, जिन मुख निकसत नाहि॥
रहिमन विपदा ही भली, जो थोरे दिन होय।
हित अनहित या जगत में, जानि परत सब कोय॥
बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर॥
रहिमन चुप हो बैठिये, देखि दिनन के फेर।
जब नीके दिन आइहैं, बनत न लगिहैं देर॥
बानी ऐसी बोलिये, मन का आपा खोय।
औरन को सीतल करै, आपहु सीतल होय॥
मन मोती अरु दूध रस, इनकी सहज सुभाय।
फट जाये तो ना मिले, कोटिन करो उपाय॥
वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग।
बाँटनवारे को लगै, ज्यौं मेंहदी को रंग॥
रहिमह ओछे नरन सो, बैर भली ना प्रीत।
काटे चाटे स्वान के, दोउ भाँति विपरीत॥
रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठ परि जाय॥
रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून।
पानी गये न ऊबरे, मोती, मानुष, चून॥
कबीर के दोहे - Kabir Ke Dohe
चाह मिटी, चिंता मिटी मनवा बेपरवाह ।
जिसको कुछ नहीं चाहिए वह शहनशाह॥
माटी कहे कुम्हार से, तु क्या रौंदे मोय ।
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूगी तोय ॥
माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर ।
कर का मन का डार दे, मन का मनका फेर ॥
तिनका कबहुँ ना निंदये, जो पाँव तले होय ।
कबहुँ उड़ आँखो पड़े, पीर घानेरी होय ॥
गुरु गोविंद दोनों खड़े, काके लागूं पाँय ।
बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो मिलाय ॥
सुख मे सुमिरन ना किया, दु:ख में करते याद ।
कह कबीर ता दास की, कौन सुने फरियाद ॥
साईं इतना दीजिये, जा मे कुटुम समाय ।
मैं भी भूखा न रहूँ, साधु ना भूखा जाय ॥
धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय ।
माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय ॥
कबीरा ते नर अँध है, गुरु को कहते और ।
हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर ॥
माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर ।
आशा तृष्णा न मरी, कह गए दास कबीर ॥
रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय ।
हीरा जन्म अमोल था, कोड़ी बदले जाय ॥
दुःख में सुमिरन सब करे सुख में करै न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे दुःख काहे को होय ॥
बडा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नही फल लागे अति दूर ॥
साधु ऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय।
सार-सार को गहि रहै थोथा देई उडाय॥
साँई इतना दीजिए जामें कुटुंब समाय ।
मैं भी भूखा ना रहूँ साधु न भुखा जाय॥
जो तोको काँटा बुवै ताहि बोव तू फूल।
तोहि फूल को फूल है वाको है तिरसुल॥
उठा बगुला प्रेम का तिनका चढ़ा अकास।
तिनका तिनके से मिला तिन का तिन के पास॥
सात समंदर की मसि करौं लेखनि सब बनराइ।
धरती सब कागद करौं हरि गुण लिखा न जाइ॥
साधू गाँठ न बाँधई उदर समाता लेय।
आगे पाछे हरी खड़े जब माँगे तब देय॥